Paddy Farming full comprehensive guide in Hindi धान की खेती की पूरी जानकारी हिंदी में

नमस्कार दोस्तों स्वागत है, आपके अपने @khetiveti Blog में, आज मै आपको Paddy Farming के बारे में पूरी जानकारी देने वाला हु इसलिए आप मेरे इस ब्लॉग पे लास्ट तक बने रहे हमारा एक Youtube channal भी है आप उसे भी जाकर Subscribe कर सकते है। इस ब्लॉग में मै youtube channal ka link निचे दे दूंगा।

धान की खेती लगभग सभी देश में की जाती है। उत्पादन की दृष्टिकोण से सबसे पहला नाम चीन का आता है उसके बाद भारत और अन्य देश आते है। भारत में धान की खेती लगभग सभी राज्य में की जाती है लेकिन पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश पंजाब,बिहार, हरियाणा,तमिलनाडु, और आंध्रप्रदेश जैसे राजयो में ज्यादा खेती की जाती है।

भारत में चावल का प्रयोग खाने में सबसे ज्यादा किया जाता है यह भोजन में मुख्य आहार के रूप में सबसे ऊपर रखा गया है क्यू की मनुष्य शरीर को कुछ भी कार्य करने के लिए सबसे ज्यादा जिसकी जरुरत होती है वो है ऊर्जा और ऊर्जा का सबसे सस्ता स्रोत चावल है।

लेकिन भारत के कई राज्य ऐसे है जिसका मुख्य आहार चावल है लेकिन इसके उत्पादकता बहुत ही कम होती है इसका मुख्य कारन नयी तकनीक की जानकारी का न होना है। धान की खेती में उत्पादकता बढ़ाने के लिए नयी तकनीक से खेती करने की जरुरत है वैसे तो धान का उत्पादन कम होने के कई कारन है लेकिन मुख्य कारन जलवायु के अनुसार किस्म का चुनाव मुख्य है।

Paddy Farming के लिए जलवायुऔर मिट्टी

धान की खेती में अच्छे उत्पादन के लिए जलवायु और मिट्टी दोनों का महत्वपूर्ण भूमिका होता है इसलिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी का सही चुनाव करना अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है।धान की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु गरम और आर्द्र होती है। धान का पूरा विकास और पैदावार बारिश के दौरान होता है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में वर्षा की आवश्यकता होती है।

उच्च तापमान और अच्छी सूर्य किरणें धान के उत्तम विकास के लिए आवश्यक होती हैं। इसके पोधो को पुरे जीवन काल में औसतन 20 डिग्री सेंटीग्रेट से 37 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की जरुरत होती है।मिट्टी की भी धान की खेती में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। धान के लिए उपयुक्त मिट्टी मटियार और दोमट होती है।धान की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी का चयन करके ही उच्च पैदावार प्राप्त की जा सकती है और किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं।

खेत की तयारी

धान की खेत की तैयारी, किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो उनके फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। खेत की तैयारी का उद्देश्य मिट्टी की उपयुक्तता और फसल के लिए आवश्यक खाद्य पूर्ण पदार्थों की प्रदान करना होता है। इसलिए धान की खेती में अच्छा उत्पादन पाने के लिए सबसे पहला कार्य खेत के तैयारी बहुत ही मत्वपूर्ण है।

धान की फशल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करके खेत तैयार करना चाहिए और अगर हरी खाद जैसे ढैचा/सनई आदि का प्रयोग कर रहे हो तो इसके साथ फास्फोरस का भी प्रयोग कर लेना सही रहता है साथ ही मेढ़ को खरपतवार मुक्त कर मजबूत मेढ़ बंदी कर देने चाहिए जिससे की वर्षा का पानी अधिक समय तक खेत में रखा जा सके और जबआप रोपाई कर रहे हो उस समय पहले खेत में पानी भरकर खेत को समतल कर दे

बीज की मात्रा और बीज उपचार

Paddy farming में बीज की बुआई दो तरीको से की जाती है। एक है सीधी बुआई और दूसरा है ट्रांसप्लांटिंग बिधि।

सीधी बुआई वैसे जगह पे की जाती है जहा सिचाई का साधन नहीं होता है। इस बिधि से खेती करने पे बीज की मात्रा ट्रांसप्लांटिंग मेथड से जयादा लगती है, लगभग 40 से 50 किलोग्राम / हेक्टेयर लग जाता है और इस बिधि से उत्पादन भी काम होता है।
लेकिन ट्रांसप्लांटिंग बिधि में 20 से 30 किलोग्राम बीज / हेक्टेयर प्रयाप्त होता है

बीज उपचार- बीज उपचार एक ऐसा मेथड है जिसको कर के पोधो में होने वाले रोग से बचा जा सकता है और यह सभी फसलों के बीज को उपचारित करना जरुरी होता है चाहे आप जिस भी फशल के खेती कर रहे हो यह मेथड के जरिये आप फशल में लगने वाले खतरनाक रोग से पोधो को कम खर्च में बचा सकते है। क्यव की कुछ रोग ऐसे होते है जो ख़राब बीज के कारण लगते है।

इसलिए बीज जनित रोग हमारे पोधो में ना आये उसके लिए हमें बीज उपचार करना बहुत जरूरी हो जाता है।25 किलोग्राम बीज उपचार करने के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोकैक्लीने के साथ 75 ग्राम थिराम के द्वारा बीज को उपचारित करे इस मात्रा को पानी में घोल कर 25 किलोग्राम बीज को कुछ घंटे तक डूबा दे उसके बाद बीज को निकाल कर खेत में बुआई कर दे

पौध की तैयारी और रोपाई

धान का पौध तैयार करने के लिए 30-35 किलोग्राम बीज एक हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिए पर्याप्त होता है और इस एक हेक्टेयर पौध नर्सरी से 15 हेक्टेयर की रोपाई की जा सकती है।

नर्सरी में पौध गलन बीमारी या कोई कीट और रोग का प्रकोप न हो इसके लिए 10 दिन के अंतराल पे फफूंदनाशक और कीटनाशक का चिरकाओ करना चाहिए।

धान की रोपाई का सबसे सही समय जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के तीसरे सप्ताह के बीच माना जाता है इसके लिए धान की 21 से 25 दिन की तैयार पौध की रोपाई की जाती। धान के रोपाई के लिए पंक्तियों से पंक्तियों के दूरी 20 सेंटीमीटर और पौध से पौध की दूर 10 सेंटीमीटर की दुरी रखनी चाहिए।

धान की खेती में खाद और उर्वरक का प्रयोग

अगर धान की अच्छी उपज पाना चाहते है, तो खाद और उर्वरको का प्रयोग कब ,कैसे और किस समय करना है इसका पता होना जरुरी। खेत में आखरी जुताई के समय 100 से 150 किवंटल/ हेक्टेयर गोबर की सड़ी खाद खेत में अवस्य मिलाना चाहिए क्यों की गोबर की खाद मिलाने से मिट्टी की जल धारण छमता बद जाती है।

इसके साथ-साथ मिट्टी में पाए जाने वाले केचुए जो की मिट्टी के लिए बहुत फायदे मंद होते है इसकी जनसँख्या ब्रिधि गोबर खाद डालने से तेजी से होने लगती है और मिट्टी के उर्वरशक्ति बढ़ने में मदद करती है। इसके साथ मानव निर्मित उर्वरक की बात करे तो 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 60 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। सिर्फ एक बात का ध्यान रखे की नाइट्रोज़न की आधी मात्रा ही शुरुआत में दे तथा सेष बचा मात्रा को 30 से 35 दिन में दो बार कर के करनी चाहिए।

सिंचाई प्रबंधन

धान की खेती करने के लिए पानी की जयादा आवयसकता होती है लेकिन फशल की कुछ बिशेष अवश्थाये ऐसे होते है जिनमे खेत में पानी बना रहना बहुत ही जरुरी होता है, जैसे :- रोपाई के बाद एक सप्ताह तक कल्ले फूटने वाली अवस्था, बाली निकलने वाली अवस्था, फूल निकलने तथा दाना भरते समय खेत में पानी रहना बजट जरुरी होता है। इस तरह से आप आवयसकता अनुसार खेत में पानी बनाये रखे।

धान की खेती में खरपतवार प्रबंधन

अगर आप अपने फशल से अच्छा उत्पादन चाहते है तो आपको फशल में चाहे वो कोई भी फशल हो उसमे खरपतवार नियंत्रण पे ध्यान देना अति आवश्यक है।

धान में खरपतवार नियंत्रण के लिए पैडीवेंडर का प्रयोग पौध के बीच में 2-3 बार 7 दिन के अंतराल पे कर सकते है। और अगर रासायनिक का प्रयोग करना चाहते है तो धान के रोपाई के 2-3 दिन के अंदर butachlor 50 एक या Pretilachlor 50 EC की 2 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 700-800 लीटर पानी में मिलाकर खेत में प्रयोग करने से खरपतवार का नियंत्रण अच्छे तरह से हो जाता है और एक बात का ध्यान जरूर दे जब आप दवा का छिरकाव कर रहे हो उस समय खेत में 5 सेंटीमीटर से अधिक पानी नहीं रहना चाहिए।

धान की खेती में रोग और उसका नियन्त्रण

धान के फशल में लगने वाले प्रमुख रोग :-धान के फशल में लगने वाले प्रमुख रोग विषाणु झुलसा, शीत झुलसा, भूरा धब्बा, जीवाणु धारी, झोका, खैरा आदि रोग है।ये सभी रोग धान के फशल में लग कर नुक्सान पहुंचाते है। धान में 3 तरह के रोग लगते है फंगल, बैक्टेरियल, और वायरल यिन रोगो से बचने के लिए हेक्सकोनाज़ोल 75% या प्रोपेकोनाजोले 25% EC या तुबेसोनाज़ोले 75% WP आदि कम्पोजीशन वाले दवा का प्रयोग रोग लगने पे कर सकते है।

लेकिन कुछ ऐसी बाते है जिसे करने से फशल में रोग लगने की संभावना बहुत ही काम हो जाती है जैसे खेत को खरपतवार मुक्त रखे, रोग प्रतिरोधी बीजो का चयन करे, बीज उपचार करके ही नर्सरी में बीज का बुआई करे , यूरिया का प्रयोग आव्य्सक्ता अनुसार करे

धान की फसल में किट और उसका नियंत्रन

धान की फशल में लगने वाले प्रमुख किट दीमक, पत्ते लपेटक, गाँधी बग, सैनिक किट, और बेधक आदि लगते है। ये सभी किट पौधे के अलग- अलग भागो पे लग कर नुक्सान पहुंचाते है कोई किट तना को नुक्सान करता है तो कोई पत्ते लपेटता है, तो कोई दाना में दूध बनते समय नुक्सान करता है।अगर अप्पके फशल में यिन किट का लक्छण देखता है तब आप नीचे दिए गए निम्न कम्पोसिएशन वाले रसायन का प्रयोग कर सकते है।1- Quinalphos 25 EC2- Monocrotophos 36 EC 3- Triazophos 40 EC4- Chlorpyriphos 20EC5- Cratp hydrochloride 50 WP6- carbofuron 3G7- Hydrochloride 50WP8- Imidaclorprid 200 SLयिन कम्पोजीशन का प्रयोग आप फशल में लगे किट के आधार पर कर सकते है।

फसल की कटाई और उसकी मरहाई

फशल की कटाई से पहले कुछ बातो को ध्यान में रखना चाहिये। जब खेत में 50 % तक बालिया पाक जाये तब फशल से पानी को निकाल देना चाहिए ऐसा करने से दाने सही से पकते है। और जब 80-85 तक बालिया पक जाये तब कटाई एवं मरहई करनी चाहिए। दाने पुरे तरीके से पाक गए है ये पता करने के लिए दाने को मुँह में लेकर दात के नीचे दबा कर चेक करना चाहिए अगर खत से आवाज करता है तब समझ लीजिये फशल काटने लायक हो गया है।

उन्नतशील प्रजातिया

वैसे तो बीज का चुनाव अपने जलवायु के आधार पे करना चाहिए क्यू की सभी बीज अलग- अलग वातावरण को निर्धारित कर बनाया जाता है।आज मई ऐसे वैरायटी के बारे में बताऊगा जो ICAR के दवारा प्रमाणित है और बहुत सारे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी इसके अंदर मौजूद है।पूसा – 1460डब्लूजीएल – 32100पूसा सुगंध-3, पूसा सुगंध-4एमटीयू-1010आईआर – 64, आई.आर. – 36धान: डीआरआर धान 310धान: डीआरआर धान 45एमटीयू-7029ललाट

आपको “धान की खेती की पूरी जानकारी हिंदी में कैसे करें” लेख पढ़कर कैसा लगा यह हमें कमेंट में बताना न भूलें,और हमारे @khetiveti ब्लॉग में और भी लेख है जैसे मक्का की खेती , बकरी पालन कैसे करे, और भी बहुत कुछ तो आपसे अनुरोध है की सारे लेख को पढ़े और अपने अन्य किसान मित्रों के साथ भी शेयर करें। धन्यवाद,


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