Kaale Angur ki kheti/ काले अंगूर की खेती की संपूर्ण जानकारी

किसानों को Kaale Angur ki kheti का सही समय पता होना चाहिए क्योंकि यह कटिंग कलम करने वाली फसलों की श्रेणी में आता है।अंगूर (grapes) में कैलोरी, फाइबर और विटामिन सी, ई होने के कारण शरीर को कई लाभ मिलते हैं। आयुर्वेद में अंगूर को स्वास्थ्य के लिए वरदान बताया गया है। अंगूर की बागवानी का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है क्योंकि यह स्वादिष्ट और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। अंगूर की खेती में बहुत संभावनाएं हैं।आज के इस ब्लॉग में हम अंगूर की खेती कैसे करें (angoor ki kheti kaise kare) बताएंगे।

Kaale Angur ki kheti के लिए उपयुक्त मिट्टी

यदि आप अंगूर की खेती करना चाहते हैं तो भूमि का सही चयन करना बहुत महत्वपूर्ण है। अंगूर की जड़ की मजबूत संरचना है। यह कंकरीली, रेतीली तथा उथली मिट्टी में सफलतापूर्वक पनपता है. हालांकि, अंगूर की खेती के लिए अच्छी दोमट, रेतीली मिट्टी होनी चाहिए, जिसमें जल निकास अच्छा हो।

खेती की तैयारी कैसे करें

किसानों को अंगूर की खेती का सही समय पता होना चाहिए क्योंकि यह कटिंग कलम करने वाली फसलों की श्रेणी में आता है। जिससे अंगूर का विकास मुख्यतः: कटिंग कलम से होता है जनवरी में काट छांट की टहनियों से कलमें बनाई जाती हैं।

ऐसे करें अंगूर की कलम कटिंग

  • हमेशा स्वस्थ और परिपक्व टहनियों से कलम लें।
  • नियमित रूप से, चार से छह गांठों वाली 23 से 45 सेमी लम्बी कलमों का उपयोग करें।
  • कट गांठ के ठीक नीचे होना चाहिए।
  • ऊपर का कट घुमा हुआ होना चाहिए।
  • ये कलम जमीन से ऊंची क्यारियों में डालें।
  • जनवरी महीने में एक वर्ष पुरानी जड़दार कलमों को नर्सरी से निकालकर बगीचे में लगाएं।

50 x 50 x 50 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे खोदकर अंगूर की बागवानी करें। अब प्रत्येक गड्ढे में 15 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद, 250 ग्राम नीम की खली, 50 ग्राम फॉलीडाल कीटनाशक चूर्ण, 200 ग्राम सुपर फॉस्फेट और 100 ग्राम पोटेशियम सल्फेट मिलाकर भर दें। पौध लगाने से लगभग पंद्रह दिन पहले इन गड्ढ़ों में पानी भर दें ताकि वे तैयार हो जाएं। जनवरी में इन गड्ढों में एक वर्ष पुरानी जड़वाली कलमों को रोपें। पौध लगाने के बाद सिंचाई तुरंत करनी चाहिए।

Kaale Angur ki kheti किस्में

किसी भी फसल का अधिक लाभ लेने के लिए उन्नत किस्में का प्रयोग किया जाना चाहिए। यह भी अंगूर की खेती पर लागू होता है।ऐसे में किसान भाइयों को खेती करने से पहले काले अंगूर की उन्नत किस्मों के बारे में जानना बेहद जरुरी है। जैसा कि आप जानते हैं, देश के प्रसिद्ध कृषि विश्वविद्यालय ने कई रंगों की अंगूर की किस्में बनाई हैं।

Kaale Angur ki kheti

अरका की नीली मणि: यह थॉम्पसन बीजरहित और ब्लैक चंपा के बीच एक पुल है। इसकी बेरियां 20-22 प्रतिशत टीएसएस की होती हैं और काली बीजर नहीं होती। एंथराकनोज यह प्रजाति सहिष्णु है। 28 टन/हेक्टेयर औसत उपज है। यह शराब बनाने के लिए बहुत अच्छा है।

Arka Shyam: यह काला चंपा और बंगलौर ब्लू चंपा के बीज का क्रॉस है। मध्यम लंबी, काली चमकदार, अंडाकार गोलाकार, बीजदार और हल्के स्वाद वाली बेरियां हैं। यह प्रजाति एंथराकनोज से बचती है। यह टेबल उद्देश्य और पेय बनाने के लिए अच्छा है।

अरका कृष्ण: यह थॉम्पसन बीजरहित और ब्लैक चंपा के बीच एक क्रॉस है। 20-21 प्रतिशत TSSA और काले रंग की बीजरहित गोल बेरियां हैं। औसत उपज प्रति हेक्टेयर ३३ टन है। यह किस्म जूस बनाने में अच्छी है।

अकबर राजसी: यह “अंगूर कलां और ब्लैक चंपा के बीच एक क्रॉस” है। 18-20 टन टीएसएस की गहरी भूरी, एकसमान, गोल, बीजदार बेरियां हैं। एनथराकनोज यह किस्म सहिष्णु है। औसत उपज प्रति हेक्टेयर 38 टन है। इस किस्म में निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं।

गुलाबी रंग: इसकी बेरियां छोटी, गहरे बैंगनी, गोल और बीजदार होती हैं। TSSA 18–20 प्रतिशत है। यह किस्म अच्छी गुणवत्ता की है और टेबल प्रयोजन में उपयोगी है। यह क्रेकिंग नहीं करता, लेकिन जंग और कोमल फंफूदी के प्रति बहुत संवेदनशील है। 10 से 12 टन/हेक्टेयर औसत उपज है।

सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन

Angur ki kheti भारत के कई भागों में की जाती है। ऐसे में किसान भाइयों को सिंचाई की खास आवश्यकता जानना महत्वपूर्ण है। देश में, अंगूर ज्यादातर बहुत कम वर्षा वाले और बहुत कम वाष्पोत्सर्जन वाले क्षेत्रों में उगाए जाते हैं। इसलिए अनुपूरक सिंचाई की जरूरत है। बेलों को ग्रोथ के हर चरण में अलग-अलग मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है।

बेलों की खाद और छंटाई के बाद सिंचाई तुरंत की जाती है। बेरी को 5-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई दी जाती है। फसल-कटाई से पहले 8-10 दिनों के लिए पानी को रोका जाता है, जिससे फलों की गुणवत्ता में सुधार होता है।

छंटाई के बाद फिर से सिंचाई होती है। गर्मियों की छंटाई से बारिश की शुरूआत तक की अवधि के दौरान साप्ताहिक अंतराल पर सिंचाई की जाती है, जब तक सर्दियों की छंटाई मिट्टी की नमी पर निर्भर रहेगी।

गर्मियों की छंटाई के बाद ४५ से ४५ दिनों के दौरान अधिक सिंचाई नहीं की जानी चाहिए क्योंकि यह फूल बीजारोपण पर उल्टा प्रभाव डालती है। यहां पर किसान भाइयों को ध्यान में रखने वाली बात यह है कि फूल खुलने से लेकर बेरी के मटर साइज के आकार तक भारी सिंचाई से बचना चाहिए क्योंकि यह कोमल फफूदी रोग जैसे समस्या को बढ़ा देता है।

अंगूर की खेती में लागत और कमाई

अंगूर की खेती में लागत का निर्धारण करने वाले कई मापदंड हैं। जैसे कि अंगूर की कलम खरीदने, खेती के लिए आवश्यक खाद खरीदने, बीमारी से बचने के लिए दवा खरीदने और इसके तैयार होने तक चलने वाले विभिन्न खर्चों में शामिल हैं। देश में विश्व की सर्वाधिक अंगूर पैदावार 30 टन प्रति हेक्टेयर है। यद्यपि किस्म, मिट्टी और जलवायु अंगूर की पैदावार को प्रभावित करते हैं, लेकिन उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर एक पूर्ण विकसित बाग 30 से 50 टन अंगूर की पैदावार दे सकता है।

यह अंगूर की भावना पर निर्भर करता है। यदि इसका औसत मूल्य 50 रुपए प्रति किलो और औसत पैदावार 30 टन प्रति हैक्टेयर होता है, तो इसके उत्पादन से 30x1000x50 = 15,00,000 रुपए की कुल आमदनी होती है। यदि इसमें से अधिकतम पांच लाख रुपये की खर्च निकाल दी जाए, तो भी शुद्ध लाभ दस लाख रुपये रहता है। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न: अंगूर कितने वर्ष में फल देता है?

उत्तर: अंगूर का पेड़ पांच से छह वर्ष की उम्र में फल देने लगता है। हालाँकि, अंगूर के फल की गुणवत्ता सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन पर भी निर्भर करती है।

प्रश्न है कि अंगूर की खेती कब और कैसे करनी चाहिए?

उत्तर-अंगूर की खेती दिसंबर से जनवरी तक होती है। इसके लिए पहले खेत की तैयारी करनी चाहिए और किस्म का चुनाव करना चाहिए। कलम लगाने के बाद उसे उचित तरीके से सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन करके खेती की जा सकती है।

प्रश्न: अंगूर किस महीने में लगते हैं?

उत्तर: फरवरी से मई तक अंगूर लगते हैं। लेकिन यह भी किस्म पर निर्भर करता है।

मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ: अंगूर का पौधा कब लगाना चाहिए?

उत्तर: दिसंबर से जनवरी के महीने में अंगूर लगाना चाहिए। जुलाई से अगस्त तक आप भी अंगूर लगा सकते हैं।


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